समिति के विषय में


मिथिलाक अतीत गौरवमय रहल अछि । अतीतक गौरवगाथा, वर्तमान समयावधि मे निश्चित दिशा व दशा कें प्राप्त करबाक ललक तथा भविष्य मे संस्कृति आओर मिथिलांचलक स्वाभाविक परम्परा कें मिथिलावासीक समग्र सहयोग सँ शनैः- शनैः वांछित एवं आकांक्षित लक्ष्य प्राप्ति हेतु देशक विभिन्न नगर-उपनगर मे अनेकों मैथिल संगठन अपन उपलब्ध साधन व योग्यतानुरूप कार्यक्रमक माध्यमें कार्यरत् अछि । सम्पूर्ण भारतवर्ष कें ज्ञान, संस्कृति आओर सभ्यता केर जननी रहल अछि मिथिला । भारतवर्षक इतिहास कें जखन शूक्ष्म बिम्ब सँ देखल जाय तखन अनुभव कयल जाइत अछि जे बहुत बेशी समय धरि मुसलमान एवं अंग्रेजक शासन रहल भारतवर्ष मे । एतेक बरख शासन कयला उपरांतहुँ मिथिलाक प्राचीन सांस्कृतिक व सामाजिक पहचान कें रंचमात्रहुँ क्षति नञि पहूँचायल गेल एहि शासक वर्ग द्वारा । पराधीनताक अन्हरगुप्पी मे रहला उपरान्तहुँ मिथिलाक सांस्कृतिक पहचान यथावत् बनल रहल तथा वर्तमान समय आओर आबयवला काल्हि धरि कायम रहत ।

छत्रपति शिवाजी महाराजक पावन भूमि, संत तुकाराम, ज्ञानदेव सदृश श्रेष्ठ संतक ज्ञानधारा सँ आलोड़ित महाराष्ट्रक भूमि पर प्रवासी मैथिल समाज वर्षहुँ सँ जीविकोपार्जन करैत एहिठामक विकास यात्रा मे सतत् श्रेष्ठ योगदान दैत रहिवासीक भूमिका मे स्वयं कें समाहित कयने छथि । परन्तु जखन सतही यथार्थ कें गहन अन्वेषण कयल जाय स्वतः एक प्रकारक कचोट सदिखन चित्त आओर चेतना कें उद्वेलित करैत अछि आ एहि बातक अहसास करबैत अछि जे विगत् 50-60 बरख सँ मैथिल रहिवासीक समक्ष होइत आबि रहल उत्पन्न समस्याक समवेत समाधान व निदान हेतु सर्वमान्य केन्द्रीय संगठनक अभाव मे समन्वित रूप सँ प्रवासी मैथिल समाजक भव्य भविष्यक स्थायी समाधान हेतु गंभीर प्रयास नञि कयल गेल । संगहि एहि बात एवं यथार्थ कें सेहो स्वीकार करबा मे थोड़बोक अतिश्योक्ति नञि जे मुंबई महानगर एवं एहिठामक क्षेत्रीय स्तर पर अनेकों मैथिल स्वयंसेवी संगठन अनवरत् अपन संवैधानिक प्रक्रियाक तहत् निर्धारित कार्यक्रमक माध्यमें यथोचित सेवा कार्य मे संलग्न छथि ।

उपर्युक्त पृष्ठभूमिक आलोक मे महाराष्ट्र/मुंबई स्थित मिथिला-मैथिली केनिहार विभिन्न सामाजिक संगठन अपना संस्थागत अस्तित्व कें यथावत् रखैत तथा प्रवासी मैथिल समाजक सर्वांगीण विकासक लक्ष्य कें प्राथमिकता दैत प्रबुद्ध आ सामाजिक जीवन मे सेवाभाव सँ समर्पित विशिष्ट व वरिष्ठ श्रेष्ठगणक मार्गनिर्देशन मे दिनांक 10.01.2016 यथा रविदिन नवी मुंबई नेरूल स्थित "राजेंद्र भवन" मे सर्वमान्य संगठन कें अस्तित्व मे अनबाक बीज वपण भेल, तदर्थ समवेत निर्णय व चिंतनक फलस्वरूप "मैथिल समन्वय समिति" केर गठन करबाक सहमति सर्वसम्मति सँ उल्लासपूर्ण वातावरण मे करतल ध्वनि सँ प्रस्तावित कयल गेल । मिथिलांचल मे एक प्रसिद्ध कहावत प्रचलित अछि - "दसक लाठी एकक बोझ" वस्तुतः तखनहिं वास्तविक रूप मे चरितार्थ भऽ सकैत अछि जखन सम्पूर्ण प्रवासी मैथिल समाज सर्वमान्य संगठनक छत्रछाया (Umbrella Organization) मे समग्रतापूर्वक एकत्रित भऽ माँ मैथिली एवं मिथिलाक महान संस्कृति कें पुर्नस्थापित करबाक निमित्त संगठित हेबाक संकल्प सँ संकल्पित भऽ सर्वश्रेष्ठ योगदान देबाक निमित्त आगू बढ़ैथ ।

मैथिल समाजक लेल प्रसन्नता व आह्लादक विषय अछि जे सर्वमान्य संगठनक रूप मे "मैथिल समन्वय समिति" अपन आकार धारण करितहिं तथा समाज कें एकजुटताक बंधन मे आबद्ध करैत सामाजिक कार्ययोजनाक संग प्रखरता सँ तथा आम सहमतिक माध्यमें लेल गेल निर्णय कें सतही स्तर पर नियोजित करबाक हेतु कार्यरत् भऽ चुकल अछि ।

"मैथिल समन्वय समिति" अपन विशालता कें प्राप्त करय एहि लेल महाराष्ट्र/मुंबईक अतिरिक्त देशक विभिन्न नगर-उपनगर व गाम-घरक माइट-पाइन पर रहनिहार मैथिल समाज कें एकताक आवरण मे एकबद्ध करबाक वांछित लक्ष्य प्राप्ति हेतु सेतु-बंधनक कार्य अनिवार्यरूपेण संचालित करब, सबहक पावन कर्तव्यक संग-संग दायित्व सेहो बनैत अछि । सामाजिक जीवनक महान परम्परा कें धारण करैत "मैथिल समन्वय समिति"क माध्यम सँ सेवा कार्य हेतु बड्ड पैघ मंच प्राप्त भेलैक अछि मैथिल समाज कें । मैथिल समाज सभ प्रकारेण सर्वगुण व विद्या-विभूति सँ सजल सम्पन्न समाज छथि । सामाजिक जीवन कें मर्यादित भंगिमा मे धारण करैत पूर्वज प्रदत्त अनेकानेक श्रेष्ठ संस्कार कें सभतरि प्रसारित करबाक आधार प्रदान करत "मैथिल समन्वय समिति ।" राष्ट्रीय स्तर पर मैथिलजन कें एकताक सूत्र मे आबद्ध करबेबाक हेतु "मैथिल समन्वय समिति" कें व्यापक जनसमर्थन प्रदान करैत शक्ति सँ सम्पन्न करबाक कार्य अविलम्ब प्रारंभ हो; निश्चित रूप सँ सफलता प्राप्त हयत एहि मे रंचमात्रहुँ संदेहक संभावना नञि ।

आऊ; सभ क्यो एकजुट भऽ एकताक बलें "मैथिल समन्वय समिति" कें सर्वभारतीय मैथिल संगठनक रूप मे स्थापित करबाक दृढ़ प्रण ली जाहि सँ सभ क्षेत्रक मिथिलावासीक समायोजन सँ नवजात संगठन सतत् सेवाक संकल्प धारण करैत संकल्पित होइत प्रगति तथा सुगतिक मार्ग प्रशस्त कऽ सकय ।